उस दिन अकेला मैंने पाया खुद को




उस दिन अकेला मैंने पाया खुद को
शायद मौका मिला मिलने का खुद को।
अपने भीतर सिर्फ "एक मैं" नही थी,
अपने नए नए रूप में पाया खुद को।
जैसे कोई बीते कल में कैद,तो कोई वर्तमान में मुक्त्त,
कोई ढेर उत्साह में चमक रहा,तो कोई मायूसी में लपेटा हुआ,
कोई हँसी मज़ाक से खिला हुआ,तो कोई गम में समेटा हुआ,
कोई आत्मविश्वास में सन ,तो कोई आत्मग्लानि में डुबा हुआ,
कोई जीवनरस से महेका हुआतो कोई शून्य में खोया हुआ,
कोई प्यार से भरा हुआतो कोई नफरत में जलनेवाला,
कोई दृढ़ निश्चय में अडग ,तो कोई निराशा में हारा हुआ,
कोई सजाग उठा हुआतो कोई बेध्यान सोया हुआ,
कोई हर परीक्षा के लिए तैयारतो कोई अधीर डरा हुआ,
कोई धृणा में कमजोर,तो कोई स्नेह से परिपूर्ण,
कोई सबंधो से हारा हुआकोई सबंधो से खुशनसीब,
कोई हठीविरोधी,तो कोई आराम से सहने वाला,
कोई अहँकार में चूरतो कोई समानता में स्थिर,
कोई मोह में मस्त,तो कोई प्रेम में निर्दोष,
कोई ईर्षा से ग्रस्ततो कोई खुद से संतुष्ट,
कोई जीवन के प्रति उदासीन,तो कोई हर क्षण को जीनेवाला,
कोई समय को मान देने वाला,तो कोई समय को व्यर्थ  करनेवाला,
कोई इतने अस्तित्व के बावजूद अस्तित्वहीन,
तो कोई इन सारे अस्तित्व के मेलजोल से स्वीकृत,
उस दिन अकेला मैंने पाया खुद को,
शायद मौका मिला मिलने को खुद को...

By : Payal Bodar

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