देवगड़ डायरी: सितंबर 2025 की एक सुकूनभरी यात्रा
देवगड़ डायरी: सितंबर 2025 की एक सुकूनभरी यात्रा
14 सितंबर 2025: देवगड़ में स्वागत की सुबह
आज की सुबह कुछ खास थी। दीदी, जीजू और निश्व अहमदाबाद से आ रहे थे, तो मैं तैयारी में लगी थी। हालांकि सुबह थोड़ी धीमी थी। उनकी ट्रेन करीब दो घंटे लेट हुई, इसलिए वे लोग 11 बजे देवगड़ पहुंचे।
निश्व को कुछ महीनों बाद देखकर दिल खुश हो गया। वो कुछ बोल नहीं रहा था। जब मैं उसे लेकर ऑटो ढूंढने गई, तब उसने कहा, "बारिश के छींटे आ रहे हैं।" हम सब घर पहुंचे और खाना खाया। खाने के बाद सबने आराम किया और शाम को हम घूमने निकले।
सबसे पहले हम देवगढ़ लाइटहाउस पहुंचे। ऊपर से जो नजारा दिखा, वो वाकई "वाउ मोमेंट" था। एक तरफ दूर-दूर तक फैला समंदर, दूसरी ओर हरियाली। चारों तरफ का दृश्य इतना सुंदर और सुकून देने वाला था कि शब्द कम पड़ जाएं।
थोड़ी देर वहां रुकने के बाद हम देवगड़ बीच गए। वहां कुछ समय बिताया, फिर अंधेरा हो गया। इसके बाद हम पवनचक्की वाले गार्डन पहुंचे। यह जगह थोड़ी ऊंचाई पर थी, जहां कई पवनचक्कियां थीं। ऊपर से नीचे समंदर और बीच का दृश्य अप्रतिम था। बड़ी-बड़ी लहरें अगाध समंदर से निकलकर किनारे आकर दम तोड़ रही थीं।
अंधेरा हो चुका था, तो हम मोमोज और सैंडविच खाकर घर लौट आए।
15 सितंबर 2025: बारिश के बीच देवगड़ दर्शन
कल मैंने बाइक हायर करके घूमने का प्लान बनाया था। लेकिन सुबह उठे तो देखा, बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। सबने आराम से उठकर नाश्ता किया और तैयार हुए। लाइट भी नहीं थी।
दोपहर होते-होते हम देवगड़ में ही घूमने निकले। सबसे पहले हम खवले गणपति के दर्शन करने गए। यह गणपति एक परिवार द्वारा हर साल स्थापित किए जाते हैं। करीब 300 साल से यह परिवार हर साल 21 दिन तक भव्य गणपति रखता है। भीड़ थी, लेकिन जब हम पहुंचे, तब शांति से दर्शन कर पाए।
इसके बाद हम तारामुंबरी में भगवान विठ्ठल-रखूमाई के मंदिर गए। वहां से नैसर्गिक दृश्य बेहद सुंदर था। बारिश हल्की-हल्की शुरू हो चुकी थी जब हम मेरी वर्क साइट पर पहुंचे। दीदी, जीजू और निशु को मेरे काम करने की जगह दिखाई, सभी दरियाई शैवाल दिखाए।
बारिश फिर से शुरू हो गई थी। दीदी, जीजू और निशु बीच पर टहलने चले गए। हम फिर कुण्केश्वर मंदिर गए, जिसे कोंकण का काशी कहा जाता है। यह समंदर किनारे बना एक भव्य और प्रसिद्ध मंदिर है। बारिश शुरू हो चुकी थी। हमने मंदिर में दर्शन किए और दूर से ही बीच को देखा। बारिश की वजह से ज्यादा देर नहीं रुक पाए और घर लौट आए।
शाम को फिर देवगढ़ बीच गए। बारिश हो रही थी, लेकिन अगाध समंदर की लहरें, पवनचक्की और ऊपर बने गार्डन से दृश्य बेहद सुंदर लग रहा था। हमने वहां काफी एंजॉय किया।
देवगढ़ बीच के पास एक "साटम" नाम का रेस्टोरेंट है, जहां की सोलकड़ी बेस्ट है। शाम हो गई थी और आज लाइट नहीं थी, लेकिन जीजू को सोलकड़ी पीनी थी, तो हम साटम की ओर चले। निशु रास्ते में ही सो गया और रास्ता थोड़ा घना और पेड़-पौधों से लदा था। हम रास्ता भटक गए और कहीं और निकल गए। मैंने घर की ओर का रास्ता गूगल मैप्स में डाला और हम घर पहुंचे।
पूरे देवगढ़ में लाइट गई हुई थी। जब हम घर पहुंचे, तब भी लाइट नहीं थी। हमने खाना ऑर्डर किया और लाइट आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद लाइट आई और खाना भी। हम सब खाना खाकर निशु के साथ खेले और सो गए।
16 सितंबर 2025: मंदिर, किल्ला और झरने की यात्रा
हर दिन की बारिश को देखते हुए आज हमने कार बुक कर ली थी। सुबह सबसे पहले हम श्री क्षेत्र विमलेश्वर गए। यह एक खूबसूरत गुफा के अंदर बना शिव मंदिर है। आज वातावरण भी अच्छा था। चारों ओर हरियाली और एक अलग ही शांति थी। हम वहां काफी देर बैठे।
इसके बाद हम रामेश्वर मंदिर पहुंचे। यह कुछ सीढ़ियां उतरकर नीचे की ओर बना एक अलग प्रकार का मंदिर था। मंदिर के बाहर चित्रों के रूप में कथा थी। यह भी एक शिव मंदिर था। वापसी में निश्व ने खुद से चढ़ाई की।
इसके बाद हम विजयदुर्ग किला पहुंचे। निश्व मैदान देखकर खूब दौड़ा। हम समंदर के सामने बैठे और दूर-दूर तक फैला समंदर देखने लगे। बारिश होने वाली थी। हम किले के अलग-अलग हिस्सों में गए। वहां एक बड़ा सा कुंड था, जिसमें कई सीढ़ियां थीं। हम बहुत अच्छे समय पर पहुंचे थे—चारों ओर फूल ही फूल थे।
किला देखने के बाद हमने खाना खाया। निशु सो गया था जब हम नहावनकोड़ वॉटरफॉल पहुंचे। बारिश हो रही थी। हम वॉटरफॉल में नहाने का मन बनाकर आए थे, लेकिन बारिश की वजह से मुश्किल लग रहा था। वॉटरफॉल बेहद सुंदर था। कुछ लोग वहां पानी में एंजॉय कर रहे थे।
मैं और निशु पानी में गए। थोड़ी देर खेले। मछलियां मेरे पैरों में गुदगुदी करके भाग रही थीं। पानी गहरा नहीं था, लेकिन निशु मेरी गोद में ही था। उसे ठंड लगने लगी, तो मैं उसे लेकर बाहर निकल गई। जल्दी से उसके कपड़े बदले और हम वहां से निकल गए।
इसके बाद हम पोखरबाव श्री सिद्धिविनायक मंदिर गए। यहां मंदिर के बाजू से नीचे जाकर एक दूसरे मंदिर का रास्ता था। एक मंदिर से दूसरे मंदिर जाने के लिए बीच में थोड़ा बहता पानी था। दूसरे मंदिर में एक छोटी सी पत्थर की शिवलिंग थी। हम थोड़ी देर वहां ठहरे और वापसी के लिए निकल गए।
करीब 6 बजे हम घर लौट आए। बाहर का खाना खाकर पक चुके थे, तो दीदी से घर पर खाना बनवाया। निशु के साथ मस्ती की, उसके हाथ से हम सब उसकी आइसक्रीम खा गए। आज का दिन अच्छा रहा—बिना किसी अड़चन के, अच्छे से घूमे।
17 सितंबर 2025: मीठमुंबरी की शांति और मैंग्रोव सफारी
आज हम सब आराम से उठे। कहीं दूर जाने की इच्छा नहीं थी, इसलिए हम मीठमुंबरी बीच चले गए। वहां कोई भी नहीं था — बस हम और समंदर की लहरें। निशु और मैं पानी में खेले, मिट्टी में अलग-अलग आकार बनाए। दीदी, जीजू और निशु ने रेत में खूब पकड़ा-पकड़ी खेली।
दोपहर होने को आई थी। वातावरण शांत था, लेकिन धूप तेज लगने लगी थी। हमें बोटिंग करनी थी और हमने किसी से बात भी की थी, इसलिए इंतजार कर रहे थे। दीदी की इच्छा थी कि मैंग्रोव सफारी करें।
जब धूप और तेज हो गई, तो हम घर लौट आए। रास्ते में मिसल पाव, वडा पाव और उसल खाया।
घर आकर निशु और बाकी सब सो गए। मैं जिससे सफारी के लिए बात कर रही थी, उसने कहा कि सफारी मुश्किल है। लेकिन मैंने आखिरी कोशिश करते हुए किसी और से पूछा। उन्होंने कहा, "हाँ, आ जाओ आधे घंटे में।"
हम तुरंत मैंग्रोव सफारी के लिए रवाना हुए। शाम हो चुकी थी। जाते समय थोड़ी बारिश थी, लेकिन मौसम बेहद सुहावना था। बोटिंग वाले भैया ने बड़े आराम से बैकवाटर में सफारी करवाई। हमने नजदीक से बहुत सारे मैंग्रोव के पेड़ देखे ।
वापसी में शाम ढल चुकी थी। हम मेरी ऑफिस के सामने वाले बीच पर कुछ समय रुके। मैं और निशु कुछ शंख और छिप ढूंढ रहे थे। दीदी और जीजू आराम से बैठे थे, समंदर की लहरों को निहारते हुए।
सफर का अंत अब नजदीक था। पिछले कुछ दिन वाकई सबसे अच्छे रहे। मुझे लगा कि ये दिन काफी रीजूवनटिंग थे,जैसे मन और तन दोनों को नई ऊर्जा मिल गई हो। और सबसे अच्छी बात, इस ट्रिप में कोई बड़ी परेशानी नहीं आई।
यह यात्रा सिर्फ जगहों की नहीं थी, बल्कि उन पलों की थी जो दिल में बस गए। इस ट्रिपने हमें सुकून, हँसी और यादें दीं -जो हमेशा साथ रहेंगी।

Best trip ever....thanx to you...
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