Mahakumbh 2025 prayagraj || महाकुंभ: जनश्रद्धा का सैलाब
Mahakumbh 2025 prayagraj || महाकुंभ: जनश्रद्धा का सैलाब
यात्रा के एक दिन पहले धारी से भावनगर निकले जहा से हमारी ट्रेन प्रयागराज तक थी। बस समय से एकाद घंटा लेट चली। मुझे कोई तकलीफ या फरियाद नही थी। भावनगर गीता मासी के घर गए और प्रतिक भाई ने पाव भाजी और पुलाव खिलाए। सुबह ५ बजे की ट्रेन थी तो जल्दी सो गए। सुबह प्रतिक भाई और उनके दोस्त रेलवे स्टेशन छोड़ने आए क्युकी रिक्शा नही मिल रही थी। इस चीज़ का उल्लेख जरूरी था क्युकी मैं मानती हु की जो लोग मदद करते हैं खुद परेशानी उठाके उनको सराहना मिलनी चाहिए। मेरे मन में आभार था। स्टेशन जाके ट्रेन का अनाउंसमेंट कही दिख नही रहा था तो मैंने इंक्वायरी में प्लेटफार्म पूछा। वहा जो कर्मचारी थे उन्होंने पूछा महाकुंभ जा रहे हो तो उनके तरफ से भी त्रिवेणी को नमन कर आना। ट्रेन प्लेटफार्म पर आ गई थी तो हम बैठ गए। दोनो बर्थ ऊपर आई थी पर अभी नीचे की बर्थ पर कोई नहीं था तो वही बैठे। टिकिट चेकर के जाने के बाद मैं और मम्मी सो गए। उठके नाश्ता किया, मम्मी ने हमारे कोच में एक आंटी से दोस्ती कर ली। वो लोग भी प्रयागराज जा रहे थे। मैं महाकुंभ में जाने लायक स्थल और दूसरी चीज प्लान कर रही थी। शाम को ४ बच्चे मिले। उनको अलग अलग गेम खिलवाए, कहानियां बताई, बहोत बाते की। वो जाके अपनी मम्मियों को बता रहे थे की ये दीदी वैज्ञानिक है। उनकी मम्मी भी खुश होके बोल रही थी की बच्चे खूब मजे किए बोल रहे थे की ये दीदी को कितना सब पता है। रात को जल्दी ही सो गए थे।
११ बजे होगे की जयपुर से एक परिवार आया जिनकी ५ बर्थ हमारे कोच में थे तो हम अपने अपने बर्थ पर चले गए। जैसे तैसे नींद आई और दूसरे दिन तो ११ बजे पहुंचने वाले थे। हालाकि जैसा दिखता हैं वैसा होता नही है। हमारी ट्रेन १ घंटा फिर दो फिर तीन ऐसे सात घंटे लेट हुई। वजह चाहे जो हो पर हम शाम को ७ बजे के करीब पहुंचे। प्लेटफार्म काफी बड़ा था। एक तरफ़ भीड़ थी एक तरफ नही थी। हम लोग बहार आए और हर्षल (भावनगर में बनाया दोस्त/छोटा भाई) व उसके मम्मी पापा को स्टेशन पर एक जगह साथ होने का इन्तजार करने लगे। हमारे साथ में एक भावनगर की फैमिली (साक्षी,तुषार ( भाई बहन) और उसके पैरेंट्स) जो लोग रहेने की व्यवस्था ढूंढ रही थी वो हमारे साथ जुड़ गई थी।स्टेशन से बाहर आकर सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन पर आए। सभी बड़े लोगो को एक जगह बैठाए और हम बच्चे रहेने की व्यवस्था करने लगे। कुछ प्रयास बाद साक्षी को पता चला की विश्व हिंदु परिषद में रहने की व्यवस्था हो सकती हैं। मैंने फोन लगाया और पूछा तो पहले तो उन्होंने मना किया फिर मैने पूछा अगर उनके वहा नही तो कही और अगर रहेने का वो बता सके तो बड़ी मदद होगी। थोड़ी देर ठहेरके उन्होंने पूछा की महिलाए कितनी हैं और हॉल मिल सकता है अगर हम रहेना चाहे तो। मैंने हामी भर दी क्युकी वहा ज्यादा भटकने का और पैरेंट्स लोगो को परेशान करने का कोई अर्थ नहीं था। उन्होंने दिए एड्रेस पर हम पहुंच गए। वहा रहेने की व्यवस्था हमारी उम्मीद से भी ज्यादा अच्छा थी। सब खुश हो गए की अच्छी जगह मिल गई। सामान कमरे में रखकर हम लोग वहा की ऑथोरिटी को मिलने गए तो उन्होंने पूछा कहा से आए हो और बाकी सब।खाना भी बना हुआ था तो बोले अगर चाहो तो खा सकते हो। दिन लंबा था, थके थे तो हम सब खाना खा लिए और फ्रेश होकर बड़े लोग सोने चले गए। मैं, हर्षल, साक्षी और तुषार बहार टहलने चले गए। शहर का ये भाग शांत था, कुछ आगे चलके हम ने चाट खाई।
उसके बाद रिक्शा लेकर संगम की ओर चल दिए। काफी चलने के बाद जब हम कच्छप द्वार पहुंचे। रात के ११ बज रहे थे और जब पीछे देखा तो आंखे फटी रह गई। लोग ही लोग हर तरफ। लोग आराम से चल रहे थे, कोई धक्कामुकी नही न कोई शोर। संगम से एक किमी दूर थे जब हमने लौटने का तय किया क्युकी १२ बज गए थे और पैरेंट्स को लेके सुबह जल्दी भी आना था। वापिस चल दिए, काफी चलने के बाद एक कार वाले ने केसर भवन,हिंदु विश्व परिषद पहुंचाया। रात के 1:३० बज चुके थे जब हम रूम पहुंचे। जाकर सब सो गए और सुबह संगम स्नान के लिए ४ बजे के करीब निकले। दो रिक्शा बदलके हम संगम से कुछ दूर उतरे जहा से आगे पैदल जाना था। संगम पर जब पहुंचे तब चारो ओर जन सैलाब ही नजर आ रहा था। पुलिस ऑफिसर भीड़ को बहोत अच्छे से मैनेज कर रहे थे। पहले हमारे ग्रुप की सब लेडीज संगम स्नान करने गई। लड़के सब का सामान संभालके खड़े थे। जब हमने मां त्रिवेणी को देखा तब अंधेरा था। सर पर जल का छिड़काव करके संगम में प्रवेश किया। मैंने मां त्रिवेणी को नमन किया। पहली डुबकी लगाते समग्र विश्व के कल्याण के लिए प्रार्थना की। दूसरी डुबकी लगाते पितृ कल्याण की प्रार्थना की। तीसरी डुबकी लगाते परिवार, स्वजन और मित्रो के सुखी जीवन की प्रार्थना की। चौथी डुबकी लगाते समय आत्मबल, मानसिक बल देने की प्रार्थना की। जो गलतियां पहले की वो दुबारा न हो इसके लिए मां त्रिवेणी शक्ति दे। सबका अमृतस्नान हो जाने के बाद हम लेटे हुए हनुमान मंदिर की ओर गए। काफी लंबी लाइन होने के कारण बाहर पर्दे पर मंदिर के आंतरिक गृह में बिराजे पूजा होते हुए लेटे हनुमान का दर्शन कर आगे बढ़े।
इसके बाद हम डिजिटल महाकुंभ गए, जहा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से महाकुंभ के बारे में अलग अलग तरीके से जानकारी दी। प्रवेश करते ही समुद्र मंथन को दिखाती अप्रतिम डिजिटल आर्ट था। दूसरी ओर माँ गंगा, जमुना और सरस्वती का आर्ट था। उसके बाद एक पूरी दीवार पर कई छोटे छोटे घंट थे और पूरी दीवार पर भगवान शिव की अनूठी मूर्ति थी। आगे जाके हमे कुंभ मेले के शुरुआत की जो कहानी है वो पर्दे पर दिखाई। इस कहानी के मुताबिक दुर्वासा ऋषि को एक दिव्य पुष्पमाला मिली थी जो उन्होंने देवराज इंद्र को आशीर्वाद स्वरूप दी। इंद्र ने वो माला ऐरावत के गले डाल दी जिसने उसको तहस नहस कर दी। इसके परिणाम दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में आकर इंद्र को श्री हीन होने का श्राप दे दिया। जिसके बाद असुरों ने देव लोक पर आक्रमण कर देवताओं की स्थिति गंभीर कर दी। व्याकुल देवताओं ने श्री हरी से देव लोक बचाने की प्रार्थना व उपाय पूछा तो भगवान हरी ने सागर मंथन का सुझाव दिया। शर्त यह थी की इसके लिए देव और दानव दोनो को एकत्रित होके सागर मंथन करना पड़ेगा। मंद्राचल पर्वत और नाग वासुकी की मदद से देव दानव ने मिल के समुद्र मंथन किया। इससे हलाहल निकला जो शिव जी ने ग्रहण किया। इसके बाद १४ अलग अलग दिव्य चीज निकले जो देव दानव में बांटी गई। जब आखिरी में धनवंतरी कुंभ में अमृत लिए निकले तो इंद्र ने उनसे वो कुंभ घड़ा छीन लिया। असुरों ने भी अमृत पाने के लिए छीना झपटी की। तब श्री हरी ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत अपने हाथ लेके देवो को पिलाके उन्हे अमर कर दिया। पर ये सब छीना झपटी में अमृत की चार चार बूंदे त्रिलोक पर गिरी। उसमे से पृथ्वी पर यह हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में गिरी। जिसके उपरांत इन स्थलों पर आदि काल से हर १२ वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होता हैं। जहा हमने ये कहानी सुनी उसकी दूसरी तरफ तीन सर वाले हाथी की भव्य प्रतिमा थी। आगे चलके हमने एक कक्ष में प्रवेश किया जहा कुंभ के बारे में अधिक जानकारी थी। नक्षत्र की दशा जब कुंभ मेला होता हैं से लेके कई सारे कुंभ मेले के चित्र।
ये सब देखने के बाद हम नाग वासुकी मंदिर जाने के लिए निकले। मेरी और मम्मी के अलावा सब थक चुके थे, समय सुबह का १० बज रहा था तो आराम करने का प्रश्न था नही। मैं और मम्मी ही आगे बढ़े। काफी चले, कुछ समय एक पुल के किनारे बैठके गंगा नदी देखी। वहा से संगम भी दिख रहा था। थोड़ी देर आराम करके वापिस चल दिए। काफी चलने के बाद नाग वासुकी मंदिर पहुंचे। वहा नागो के राजा वासुकी का अदभुत मंदिर था। बाजू में एक शिवालय भी था। दर्शन करने के बाद हम थोड़ी देर बैठे, नाश्ता किया और आगे चल दिए। थोड़ी देर चले तो ढलाव के नीचे ७ करोड़ ५१ लाख रुद्राक्ष से बने १२ ज्योतिर्लिंग बने हुए थे। ये जगह कुछ अलग ही ऊर्जा थी।
वहा पे अम्बे मां की मूर्ति थी, काफी घंट थे। थोड़ी देर विचरण के बाद हम आगे चले। आगे बढ़े तो मैंने देखा वोलिनी कंपनी वालो ने अपने प्रोडक्ट्स और निशुल्क मैसाजेर रखा हुआ था। मैंने सोचा मम्मी के पैरों की मसाज करा लेते हैं। जब पूछा तो बोले आप भी अपने पैरो की मसाज करा सकते हो। मैं और मम्मी दोनो ने करीब पांच मिनट मसाज करवाया। मुझे तो पहले पाव में गुदगुदी हुई लेकिन फिर पाव एकदम रिलैक्स हो गए। हम सुबह से काफी चले थे। पाव को काफी आराम मिल गया। उसके बाद हम तिरुपति बालाजी के हुबहू मंदिर बनाया था उसकी खोज में आगे चले। वो तो तब नही मिला पर नेत्रकुंभ दिखा। जहा आंख की सारवार निशुल्क हो रही थी।
थोड़ा आगे चले तो एक भंडारा दिखा। वहा ५- १५ साल के लड़के लड़कियां जमीन पर बैठा के थाली देखे चावल, सब्जी परोस रहे थे। खाना अच्छा था, हमने थोड़ा खाया और आगे चल दिए। आगे चलके हम इस्कॉन मंदिर बनाया था वहा पहुंचे। थोड़ी देर रुक के आगे देखा तो एक मठ दिखा जहा हनुमानजी की बड़ी मूर्ति थी। यह जगह बहोत सुकून देने वाली थी। उस जगह पर २००- ३०० यज्ञवेदी भी थी। इस जगह का वातावरण बहोत ज्यादा अच्छा था तो हम थोड़ी देर वही रुके। इसके बाद स्वामीनारायण भगवान का मंदिर बनाया था वहा गए। यह सब बाजू बाजू में ही थे तो रास्ते में आती हर चीज हम देख रहे थे। वहा पर एक कक्ष था जहां कुछ सुधरणा फिल्म दिखाई जा रही थी। थोड़ी देर वहा फिल्म देख के हम आगे बढ़े। १ किमी चलके तिरुपति बालाजी के जैसा मंदिर बनाया था वहा पहुंचे। जब मैंने भगवान बालाजी की मूर्ति देखी तो मंत्रमुग्ध हो गई। वो इतनी सुंदर व अप्रतिम थी की शब्दो मे वर्णन करना कठिन हैं। मंदिर भी काफी शांत था। धीमी धीमी मनभावन खुशबू हवा में थी। दर्शन करने के बाद हम वहा बैठे। मैंने मम्मी को कहा ध्यान करते है। आश्चर्य से क्षण में ही ध्यान लग गया। ये इनमे से कुछ पल थे जिसकी तलाश मुझे हमेशा रहती है। अनहद शांति, संतुष्टि का एहसास। थोड़ी दूर ओमकार चल रहा था, जिसकी ध्वनि धीरे धीरे कानो में जा रही थी। ओमकार ने मन शरीर को अलग ही स्तर पर शांत किया। समय का पता नही चला,पर जब ध्यान टूटा तो सबकुछ आनंदमय लग रहा था। मैं नहीं जानती क्या सकारात्मक शक्ति थी उस जगह, उस वातावरण में,पर कुछ था जरूर।
अब हम उत्तरप्रदेश दर्शन मंडपम जाने चल दिए जो वहा से १ किमी था। चलते चलते हमे कलाकुंभ दिखा। शाम हो चुकी थी। वातावरण काफी रमणीय था। मैदान में समुद्र मंथन बनाया हुआ था, जहा समुद्र मंथन की कहानी चल रही थी। हम थोड़ी देर बाद हॉल में गए। यहां महाकुंभ से संबंधित पेंटिंग्स, आर्ट वर्क था। हॉल अंदर अंदर दूसरे कमरों में ले जा रहा था। हर जगह बस महाकुंभ की चित्रकारी। हर एक चित्र एक से बढ़कर एक था। हम काफी घूमे फिर कलाग्राम चले। वहा कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था। हम थोड़ी देर बैठे और कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों के लोक नृत्य देखे। एक कृति योग के संबंधित भी थी। कलाग्राम में कुछ स्टॉल भी लगे थे जहा भारत के अनेक राज्यों से लोगो ने अपने प्रदेश की खास चीजें बेचने के लिए रखी थी। हम जब बाहर निकले तब अनुभूति केंद्र के बाहर लंबी लाइन दिखी। मुझे लगा यहा कुछ खास होना चाहिए। हम भी लाइन में खड़े हो गए। हमारी बारी तुरंत आ गई। हमे एक हाल में बैठाया गया। थोड़ी देर बाद एक शॉर्ट फिल्म शुरू हुई। यह खास थी क्युकी ४ दिशा में यह दिख रही थी। इसमें राजा भगीरथ ने कैसे गंगा मैया को पृथ्वी पर लाके अपने पूर्वजों का तर्पण किया ये दिखाया था। यह इतनी सुंदर तरीके से बनाया गया था की सब देखते रह गए। मेरे तो एक समय गंगा मैया का स्वर्ग से धरती पर आने के सीन में रौंगटे खड़े हो गए। इसके बाद हम अलग अलग राज्य के फूड स्टॉल लगे थे वहा गए। हमने बिहार का लिट्टी चोखा खाया। ये काफी टेस्टी पर तीखा था। मैं लस्सी ले आई और आखिर के मुरमुरे की भेल खा के हम कलाग्राम से निकले। बाहर थोड़ा घूमके हम अपने रहने की जगह पहुंचे।
केसर भवन के अधिकारियों से जब प्रयागराज छींकी रेलवे स्टेशन जाने का माध्यम पूछा तो थोड़ा चिंतित हुए क्युकी वे बोले के वहा का रास्ता ज्यादातर ट्राफिक की वजह से बहोत समय लेता है। हमारी ट्रेन तो सुबह ७ बजे थी पर वे बोले ३- ४ घंटे जल्दी पहुंचो ऐसे निकलना। उस तरफ कार ज्यादातर जाती नही है क्युकी ट्राफिक में फस जाती है। हमने अगले दिन जिस कार वाले भैया ने केसर भवन छोड़ा था उसको कॉल किया अगर वो हमे स्टेशन पर पहुंचा दे तो। उन्होंने हा बोला और हम रात के दो बजे निकलने का सोचके १२ बजे सोए। करीब २:३० बजे वो भैया आए,सामान में हमारे पास दो बैग ही थी तो बाइक में दिक्कत नही हुई। बीच में एक जगह ट्राफिक मिला फिर बहोत आराम से बिना कोई दिक्कत हम रेलवे स्टेशन करीब ३:३० बजे पहुंच गए। वे भैया ने पैसे लेने को काफी मना किया पर हमने उनको हमारे लिए परेशानी उठाके भी सही से पहुंचाने बदल पैसे दिए। उसके बाद रेलवे स्टेशन में आरक्षित टिकिट वालो के लिए जहा बैठने की व्यवस्था थी वहा जाके बैठ गए।
रेलवे अधिकारियों ने भीड़ नियंत्रित करने काफी अच्छी व्यवस्था करी थी। जब ट्रेन आने वाली हो उसके आधे घंटे पहले ही रेलवे अधिकारी ट्रेन का नाम अनाउंस करते थे और वो लोग ही रेलवे स्टेशन के अंदर जा सकते थे। हमारी ट्रेन लेट दिखा रही थी। मैं और मम्मी बारी बारी थोड़ी देर सो गए। उठके मैं थोड़ा घूम के आई। वहा बाहर जंक के अलावा कुछ खाने को नही था तो खाली हाथ वापिस आई। थोड़ी देर बाद वापिस गई तो संतरे और पानी लेके आई। करीब ७ घंटे लेट हुई हमारी ट्रेन अनाउंस हुई। हालाकि मैं सुबह से फोन में ट्रैक कर रही थी की ट्रेन कहा पहुंची। हमे लाइन बनाके रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश करने दिया। थोड़ी देर में ट्रेन आई तो हम अपने ऐसी कोच में बैठ गए। करीब आधे घंटे बाद ट्रेन चली। हमने दोपहर को ट्रेन की पेंट्री से ही खाना खाया और सो गए। दूसरे दिन रात को ९:३० बजे ट्रेन पहुंची, मम्मी को धारी की बस के लिए बैठाके मैं दीदी के घर पहुंची। मुझे दो दिन बाद मुंबई कॉन्फ्रेंस के लिए जाना था तो मैं अहमदाबाद ही रुकने वाली थी। प्रयागराज की यात्रा विघ्न रहित समाप्त हुई। मैं मानती हु की हमे इस यात्रा में काफी सहाय बिना मांगे मिली। अच्छे लोग मिले, अच्छी यादें, भव्य आयोजन देखने को मिला। जनश्रद्धा का सैलाब देखने मिला। महाकुंभ में लगे पोलीस कर्मचारियों का संयम दिखा। उस स्थल की अवर्णनीय ऊर्जा महेसुस की। मुझे जानने वाले लोगो के लिए आश्चर्य की बात थी की मैं जो हमेशा मानव समूह से रहित जगह पर जाना पसंद करती हु वो महाकुंभ कैसे चली गई। आश्चर्य मुझे भी था अपने आप से, चाहे भगवान का बुलावा मानो, चाहे अदृश्य सकारात्मक शक्ति का खिंचाव या मेरी जिज्ञासा, मेरे अंदर के वैज्ञानिक की कुछ खोज करने की उत्सुकता ही मान लो।
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