डार्लिंग्स फिल्म रिव्यू
"पर मैं तो मेंढक हु,बिच्छू को मारने के लिए मैं भी बिच्छू बन रही हु,ये गलत हैं , मैं ये नही हु' ये जबरदस्त डायलॉग हैं फिल्म "डार्लिंग्स " से। जसमीत रीन द्वारा निर्देशित की गई, आलिया भट्ट, विजय वर्मा, शेफाली स्टार ये फिल्म डोमेस्टिक वायलेंस के ऊपर हैं। बहोत नजाकत से ऐसे इश्यू को ह्यूमर के साथ दिखाया हैं। भोली बदरू ( आलिया भट्ट) जो अपने पति को शराब छुड़वाना चाहती हैं क्युकी वो शराब पीके जानवर बन जाता था, मारता था जिस तरह से एक मोड़ के बाद बदल जाती हैं और बोलती हैं ये नई वाली बदरू को कोई फर्क नई पड़ता क्युकी उसका दिल मर गया है,वो अपनी खोई हुई इज्जत अपने पति से वापिस चाहती हैं। जो लड़ाई उसने इज्जत के लिए शुरू की थी वो लास्ट में खत्म करना चाहती हैं ये बोलके की इज्जत तो उसकी हैं न ,वो क्यू उसके पति से मांग रही हैं, किसी ओर को सजा देने में खुद शैतान बनना अपनें असली स्वभाव को खोना हैं, जिससे बाद में पछतावा ही होता है। बहोत बढ़िया फिल्म। सहन करना या धैर्य से फैसले लेती भोली बदरू से एक बेधड़क बदरू का सफर तारीफ ए काबिल। विजय वर्मा का अपने रोल को पूरी तरह न्याय देना हो या शेफाली का मां के रूप में बदरू का साथ देना, चहरे से ही काफी कुछ कह जाना दिखाता हैं की दोनो काफी जबरदस्त एक्टर्स हैं। जबरदस्त कहानी, बखूबी तरह से बताना, बिना किसी चीज को ओवर किए, कहानी पे टीके रहेने के लिए मैं सोचती हु ये फिल्म सबको देखने लायक हैं।
- पायल बोदर
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