डॉ. बिंदेश्वर पाठक: एक जीवन, एक मिशन, एक क्रांति || Sulabh International ||
डॉ. बिंदेश्वर पाठक: एक जीवन,
एक मिशन, एक क्रांति
एक
गाँव में जन्मे लड़के ने शायद कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह पूरे भारत में
स्वच्छता की परिभाषा बदल देगा। लेकिन कुछ लोग सिर्फ सपने देखने के लिए नहीं पैदा
होते,
वे अपने सपनों को साकार करने के लिए दुनिया में आते हैं।
डॉ. बिंदेश्वर पाठक ऐसे ही एक इंसान थे।
बचपन
में जब उन्होंने देखा कि जाति व्यवस्था के कारण लोग मैला ढोने वालों से किस तरह
दूरी बनाते हैं, तब उनके मन में सवाल
उठा—क्या इंसान की इज्जत का फैसला उसका काम तय करेगा? यह सवाल उनके भीतर धधकती आग बन गया। समाजशास्त्र की पढ़ाई के दौरान गांधीजी के विचारों से
प्रेरित होकर उन्होंने ठान लिया कि स्वच्छता सिर्फ अमीरों का अधिकार नहीं, बल्कि हर भारतीय की जरूरत है। इस सोच ने जन्म दिया
"सुलभ इंटरनेशनल" को। १९७० में सुलभ इंटरनेशनल की नींव पड़ी और तब से लेकर आज तक इसने स्वच्छ भारत
की दिशा में अभूतपूर्व योगदान दिया है। खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के लिए
उन्होंने दो-पिट टॉयलेट सिस्टम विकसित किया, जो कम पानी में भी प्रभावी था। सुलभ टॉयलेट्स से निकलने वाले कचरे को ऊर्जा
में बदलने की तकनीक विकसित की गई।
इसके
साथ ही सुलभ ने मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई। आज भारत में लाखों सुलभ शौचालय हैं, जो गरीब से गरीब व्यक्ति को भी स्वच्छता का अधिकार देते
हैं। लेकिन डॉ. पाठक का सफर सिर्फ शौचालयों तक सीमित नहीं था। पिछले कुछ वर्षों में सुलभ ने और भी कई नए कदम उठाए:
महिला
सशक्तिकरण: सुलभ इंटरनेशनल, वृंदावन और
वाराणसी की विधवाओं की दुर्दशा को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्तीय सहायता,
स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और भावनात्मक समर्थन
सहित एक समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से, सुलभ का उद्देश्य इन
महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। सुलभ इंटरनेशनल महिलाओं की
स्वच्छता और सशक्तिकरण के लिए कई पहल कर रहा है। इसमें मासिक धर्म स्वच्छता को
बढ़ावा देना, सैनिटरी पैड
बनाने का प्रशिक्षण देना, और स्थानीय
स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से उत्पादों को बढ़ावा देना शामिल है। महिलाओं के
कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जैसे सिलाई और ब्यूटी केयर का प्रशिक्षण देना, जिससे आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा मिले। सामुदायिक व्यवहार परिवर्तन के माध्यम
से स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है, जिससे बच्चों में बीमारियों की कमी आई है। सुलभ स्वच्छता क्लबों के माध्यम से
स्कूलों में सकारात्मक बदलाव लाए जा रहे हैं, और कम लागत वाले "सुलभ शौचालय" और "पिंक टॉयलेट्स" जैसी
सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। इन प्रयासों से महिलाओं के जीवन में सुधार हो
रहा है और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी-४, एसडीजी-६) को प्राप्त करने में मदद मिल रही है
कोविड-१९ महामारी के बाद खाद्य सुरक्षा: कोविड-१९ महामारी के दौरान जरूरतमंदों को राशन, मास्क और सैनिटाइज़र बांटे। इसके उपरांत महामारी के दौरान शुरू हुआ, सुलभ का खाद्य कार्यक्रम सीमांत किसान समुदायों, विशेष रूप से महिला किसानों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है।
इसका दोहरा उद्देश्य है: साल भर भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्वदेशी
कृषि विधियों को पुनर्जीवित करना और बीज बैंकों का निर्माण करना जो महिलाओं को
अतिरिक्त फसलें और सब्जियां बेचकर आजीविका कमाने में मदद करते हैं। जुलाई २०२१ में
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के संगमनेर और अकोले ब्लॉक में शुरू हुआ यह खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लैंगिक भेदभाव, खाद्य संप्रभुता और पोषण पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य
महिला किसानों को बीज पर नियंत्रण देकर सशक्त बनाना और सतत विकास लक्ष्यों
(एसडीजी) १,२ और ५ को बढ़ावा देना है। इसके उपरांत बिहार खाद्य संप्रभुता परियोजना जिसके अंतर्गत
दरभंगा और मधुबनी के १० गांवों में ४२५ किसानों की आजीविका में सुधार, मुफ्त बीज, तकनीकी सहायता
और बाजार संपर्क प्रदान करना शामिल है। महिलाओं को मिलेट खेती कार्यक्रम के लिए
प्रोत्साहित करके स्थानीय कारीगरों और मछुआरों के साथ, यह कार्यक्रम स्थायी आजीविका और कुपोषण से निपटने के लिए
पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक प्रथाओं के साथ जोड़ता है।
उनके
कुशल नेतृत्व में, सुलभ इंटरनेशनल
ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने में अहम
भूमिका निभाई है। इन प्रयासों को देखते हुए, सुलभ को स्वच्छ
भारत अभियान के क्रियान्वयन के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। महात्मा
गांधी के पौत्र, प्रोफ़ेसर
राजमोहन गांधी ने डॉ. बिंदेश्वर पाठक को गांधीजी की आत्मा के पुत्र के रूप में
वर्णित किये हैं।
डॉ.
बिंदेश्वर पाठक का निधन १५ अगस्त २०२३ को हुआ, लेकिन उनका सपना आज भी जिंदा है। उन्होंने जो क्रांति शुरू की, वह सिर्फ टॉयलेट बनाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसने समाज की मानसिकता बदल दी।
मेरा
विचार केवल एक समाधान प्रदान करना नहीं था, बल्कि उस समाज को भी मुक्त करना था जो परंपरागत रीति-रिवाजों में कैद था। मैं
हाथ से मैला ढोने वालों की गरिमा को बहाल करने के लिए दृढ़ था, जिससे वे वंचित थे," डॉ. पाठक कहते हैं।
उनके मानवीय कार्यों ने भारत में असंख्य पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन को गरिमापूर्ण बनाया है। उनका
कहना था,
"ईश्वर उन्हीं की मदद करता है जो दूसरों की
मदद करते हैं।
Nice
ReplyDeletegood to know
ReplyDeleteGreat to know about the real man behind sulabh 🫡
ReplyDeleteNice and informative
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